भारत अड़ा... डेयरी को लेकर नो-डील! क्योंकि 8 करोड़ किसानों को हो जाएगा 1 लाख करोड़ का नुकसान

नई दिल्ली: भारत सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए डेयरी सेक्टर को लेकर वैश्विक व्यापार समझौते (Free Trade Agreement - FTA) में शामिल न होने का निर्णय लिया है। इस फैसले का सीधा असर भारत के लगभग 8 करोड़ डेयरी किसानों पर पड़ेगा – लेकिन सरकार का मानना है कि यह फैसला उनके हित में है। अगर डील होती तो किसानों को 1 लाख करोड़ रुपये
क्या है मामला?
विश्व व्यापार संगठनों और कई देशों के बीच FTA (Free Trade Agreement) की बातचीत में डेयरी प्रोडक्ट्स को शामिल करने का प्रस्ताव था। अगर भारत इसे स्वीकार कर लेता, तो विदेशी दूध और दूध उत्पाद भारतीय बाज़ार में बिना शुल्क के आ सकते थे।
इसका असर होता भारत की घरेलू डेयरी इंडस्ट्री पर – जो न सिर्फ विश्व की सबसे बड़ी है, बल्कि ग्रामीण भारत की रीढ़ भी मानी जाती है।
सरकार ने क्यों किया इनकार?
- विदेशी डेयरी उत्पादों की कीमतें भारत की तुलना में कम हैं।
- आयात बढ़ने से स्थानीय किसानों को कम कीमत मिलती।
- भारत में 8 करोड़ परिवार इस सेक्टर पर निर्भर हैं।
- सरकार का अनुमान है कि इससे किसानों को ₹1 लाख करोड़ तक की चपत लग सकती थी।
डेयरी सेक्टर का महत्व
भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। देश की डेयरी व्यवस्था छोटे किसानों और महिला उद्यमियों पर आधारित है। अमूल, सुधा, नंदनी जैसी सहकारी संस्थाएं इस सिस्टम को चलाने में मुख्य भूमिका निभाती हैं।
Farming के साथ-साथ डेयरी ग्रामीण भारत की आय का अहम स्रोत है।
क्या कहते हैं किसान संगठन?
किसान संगठनों और सहकारी डेयरी फेडरेशनों ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि इस "नो-डील" निर्णय ने देश के छोटे किसानों को बड़ी आर्थिक चोट से बचा लिया है।
इस फैसले के पीछे की रणनीति
सरकार की नीति "आत्मनिर्भर भारत" को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है। इससे भारत की घरेलू डेयरी इंडस्ट्री को सुरक्षा दी जा रही है, ताकि वे प्रतिस्पर्धा के दबाव के बिना ग्रोथ कर सकें।
क्या आप जानते हैं?
- भारत में हर दिन लगभग 55 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है।
- देश के कुल कृषि GDP में डेयरी का योगदान लगभग 24% है।
- डेयरी सेक्टर में 60% से अधिक योगदान महिलाओं का होता है।
- अमूल दुनिया की सबसे बड़ी डेयरी सहकारी संस्था है।
निष्कर्ष
भारत द्वारा डेयरी को FTA में शामिल न करना सिर्फ एक व्यापारिक निर्णय नहीं, बल्कि किसानों और ग्रामीण भारत के हितों की रक्षा के लिए एक साहसिक कदम है। यह फैसला ‘वोकल फॉर लोकल’ और आत्मनिर्भर भारत के मिशन को और मजबूती देता है।
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